अन्ना हजारे के अनशन के दौरान दबे स्वर में निजी क्षेत्र को भी लोकपाल मसौदे में शामिल करने की आवाज उठी पर ऐसी आवाजों को कोई महत्व नहीं दिया गया।
उस समय मुझे भी लगा कि ये लोग समाज कंटक है किसी कार्य को अच्छे से नहीं चलने देना चाहते ।
ऐसा लगना स्वाभाविक था क्योंकि मेरा वास्ता ऐसी स्थिति से नहीं पडा था।
अब जब इससे रूबरू हुआ तो मेरी बुद्धि से अज्ञानता का पर्दा हटा कि ये तो पानी में नमक की तरह हमारे अंदर समाया हुआ है ।
हुआ यूँ कि मुझे अपने कॉलेज(हंस कॉलेज ऑफ एजुकेशन ,कोटपूतली ) से अंकतालिका व चरित्र प्रमाण-पत्र लेना था।
कल जब मैं कॉलेज गया तो बाबू ने अंकतालिका तो दे दी पर चरित्र प्रमाण-पत्र देने के लिए 100 रू. मॉंगे।
मैंने कहा क्या मेरा चरित्र खराब है
जो आप उसे सही करने के लिए रिश्वत मॉंग रहे है ।
बाबू कुछ तैश में आते हुए कहा तुम्हें लेना है तो लो वरना बाद में आओगे तो 200 लगेंगे ।
जवाब सुनकर मैं अवाक् रह गया मैंने एक दो लोगो से इस संबंध में पूछा तो सबने कहा क्यों 100 रू. के लिए पचडा मोल लेते हो दे दो।
चुँकि मुझे इसकी आवश्यकता थी मैंने 100 रू. देकर अपना चरित्र अच्छा होने का प्रमाण-पत्र प्राप्त किया और घर चला आया।
घर आकर जब उसे देखने लगा तो मुझे खुद से नफरत होने लगी कि क्या मैं इतना गिर गया जो मुझे अपने चरित्र को अच्छा लिखवाने के लिए रिश्वत देनी पडी ।
क्या मै विरोध नहीं कर सकता था , पर उससे क्या होता ऐसी स्थिति का सामना तो रोज़ होता है क्या यही भ्रष्टाचार है अगर यही है तो पूरा जीवन विरोध करने में समाप्त हो जायेगा
और यह दैत्य समाप्त हो जायेगा मुझे नही लगता ।
इस अंधकार भरे तूफान में आशा की कोई किरण नजर नही आ रही
दिशाऍं खो रही है ,
मैं भटक रहा हूँ
उन तमाम आशार्थीयों की तरह जो सोचते है कि लोकपाल नाम का कोई जिन्न आयेगा और हम सब को इससे एक दिन मुक्त करा देगा।
-घनश्याम यादव
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